जीवन में हमें आगे बढ़ते रहने से ही मंजिल हासिल होती है। स्थिरता एक ऐसी चिज है जो हमें आगे नहीं बढ़ने देती है। स्थिर होने से हमारा जीवन एकदम रुक सा जाता है। हम एक ही पल पर अपना बहुत सारा समय लगा देते हैं जिससे हमारे जीवन का किमती समय तो बरबाद होता ही है साथ ही हमारा बहुत सारा नुक्सान भी होता है इसिलिए हमें निरंतर आगे बढ़ते जाना चाहिए।
रहीम दास जी के प्रसिद्ध दोहे जो अपने जीवन में बहुत काम आते हैं- बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय| रहिमन मनहि लगाईं कै, देखि लेहू किन कोय। नर को बस करिबो कहा, नारायन बस होय | जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग. चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग | जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं| खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय | जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह. धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह | रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय | रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय | एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय। रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय | रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय। सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहै कोय | बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय। रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय | धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पियत अघाय। उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय | रहिमन देखि बड़ेन को, लघु