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हमेशा आगे बढ़ते रहो

  जीवन में हमें आगे बढ़ते रहने से ही मंजिल हासिल होती है। स्थिरता एक ऐसी चिज है जो हमें आगे नहीं बढ़ने देती है। स्थिर होने से हमारा जीवन एकदम रुक सा जाता है। हम एक ही पल पर अपना बहुत सारा समय लगा देते हैं जिससे हमारे जीवन का किमती समय तो बरबाद होता ही है साथ ही हमारा बहुत सारा नुक्सान भी होता है इसिलिए हमें निरंतर आगे बढ़ते जाना चाहिए।

रहीम दास के दोहे (भाग-2)

रहीम दास जी के प्रसिद्ध दोहे जो अपने जीवन में बहुत काम आते हैं-   बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय| रहिमन मनहि लगाईं कै, देखि लेहू किन कोय। नर को बस करिबो कहा, नारायन बस होय | जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग. चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग | जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं| खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय | जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह. धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह | रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय | रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय | एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय। रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय | रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय। सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहै कोय | बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय। रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय | धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पियत अघाय। उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय | रहिमन देखि बड़ेन को, लघु

रहीम दास के दोहे

रहीम के दोहे रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।  पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥ दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय। जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥ रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत। चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥ वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग। बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥ जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय। प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥ जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग। चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।। वृक्ष कबहूँ नहीं फल भखैं, नदी न संचै नीर। परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर।। रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय। टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।। निज कर क्रिया रहीम कहि सीधी भावी के हाथ। पांसे अपने हाथ में दांव न अपने हाथ।। रहिमन मनहि लगाईं कै, देख लेहूँ किन कोय। नर को बस करिबो कहा, नारायण बस होय।।  बिगड़ी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।     रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।। राम न जाते हरिन संग से न रावण साथ। जो रहीम भावी कतहूँ होत आपने हाथ।। मय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात। सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात। रहिमन देख

कबीर के दोहे (पार्ट -2)

कबीर जी के दोहे जो पूरी जिंदगी काम आए। पर नारी का राचना , ज्यूं लहसून की खान। कोने बैठे खाइये , परगट होय निदान।।  कुटिल वचन सबतें बुरा, जारि करै सब छार। साधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार।। शब्द न करैं मुलाहिजा, शब्द फिरै चहुं धार। आपा पर जब चींहिया, तब गुरु सिष व्यवहार।। प्रेम-प्रेम सब कोइ कहैं, प्रेम न चीन्है कोय। जा मारग साहिब मिलै, प्रेम कहावै सोय॥ यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान । शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान । सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज । सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए । पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात । देखत ही छुप जाएगा है, ज्यों सारा परभात । ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग । तेरा साईं तुझ ही में है, जाग सके तो जाग । जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप । जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप । जो घट प्रेम न संचारे, जो घट जान सामान । जैसे खाल लुहार की, सांस लेत बिनु प्राण । जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होए । यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोए । ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग । प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत । कहत सु