रहीम के दोहे
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥
रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥
चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥
जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।
वृक्ष कबहूँ नहीं फल भखैं, नदी न संचै नीर।
परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर।।
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।।
निज कर क्रिया रहीम कहि सीधी भावी के हाथ।
पांसे अपने हाथ में दांव न अपने हाथ।।
रहिमन मनहि लगाईं कै, देख लेहूँ किन कोय।
नर को बस करिबो कहा, नारायण बस होय।।
बिगड़ी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।
राम न जाते हरिन संग से न रावण साथ।
जो रहीम भावी कतहूँ होत आपने हाथ।।
मय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात।
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात।
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि॥
मांगे मुकरि न को गयो , केहि न त्यागियो साथ।
मांगत आगे सुख लह्यो , ते रहीम रघुनाथ।।
रहिमन तब लगि ठहरिये, दान मान सम्मान।
घटता मान देखिये जबहि, तुरतहि करिए पयान।।
रहिमन कबहुं बड़ेन के, नाहिं गरब को लेस ।
भार धरे संसार को, तऊ कहावत सेस ॥दुरदिन परे रहीम कहि, भूलत सब पहिचानि।
सोच नहीं वित हानि को, जो न होय हित हानि ॥
सोच नहीं वित हानि को, जो न होय हित हानि ॥
दीन सबन को लखत है, दीनहिं लखै न कोय।
जो रहीम दीनहिं लखत, दीनबन्धु सम होय ॥जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह।
धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह।।
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