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रहीम दास के दोहे (भाग-2)

रहीम दास जी के प्रसिद्ध दोहे जो अपने जीवन में बहुत काम आते हैं-


 बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय

रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय|

रहिमन मनहि लगाईं कै, देखि लेहू किन कोय।
नर को बस करिबो कहा, नारायन बस होय |

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग.
चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग |

जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं
गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं|

खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय
रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय |

जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह.
धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह |

रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय
सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय |

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय |

एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय |

रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहै कोय |

बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय |

धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पियत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय |

रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि |

रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून |

रहिमन निज संपति बिना, कौ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय |

रहिमन सो न कछु गनै जासों लागो नैन।
सहि के सोच बेसाहियेा गयो हाथ को चैन।

रहिमन पैंडा प्रेम को निपट सिलसिली गैल।
बिछलत पाॅव पिपीलिका लोग लदावत बैल।

कहि रहीम या जगत तें प्रीति गई दै टेर।
रहि रहीम नर नीच में स्वारथ स्वारथ टेर।

सबको सब कोउ करै कै सलाम कै राम।
हित रहीम तब जानिये जब अटकै कछु काम।

जे सुलगे ते बुझि गये बुझे तो सुलगे नाहि।
रहिमन दाहे प्रेम के बुझि बुझि के सुलगाहि।

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