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कबीर के दोहे (पार्ट -1)

कबीर जी एक महान कवि हुए । जिन्होंने अपने समय में बहुत सारी रचनाएं की और बहुत सारे छंद- दोहे  लिखे।
जिनमे से मुख्य दोहे नीचे लिखे गए है -

" बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।"

"पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।"

“कहैं कबीर देय तू, जब लग तेरी देह।
देह खेह होय जायगी, कौन कहेगा देह।”


“ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करै, आपौ शीतल होय।”

“धर्म किये धन ना घटे, नदी न घट्ट नीर।
अपनी आखों देखिले, यों कथि कहहिं कबीर।”
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"चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह ।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह ।"


"गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय ।"


"यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान ।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ।"

"सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज ।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए ।"

"बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर ।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।"
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"साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।"

"धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।"

"माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।"


"जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।"


“कबीर तहाँ न जाइये, जहाँ जो कुल को हेत।
साधुपनो जाने नहीं, नाम बाप को लेत।"



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